दीवान पं.विद्याधर जी भट्टाचार्य की त्रिपोलिया बाज़ार में बनी हवेली है जयपुर शहर का केंद्र, उसी के चारों और चौपड़ों का हुआ निर्माण…
टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, दिल्ली/2.12.24
“जयपुर रियासत का गौरवशाली अतीत रहा है। यहाँ के शासकों ने राजनीति, धर्म, तकनीकी, शिल्प और अन्य कलाओं को समृद्ध करने में बड़ा योगदान दिया है। हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए आक्रांताओं से अनेक युद्ध लड़े हैं और भले ही मुगलों से जयपुर रियासत की संधि रही ही लेकिन इसके बावजूद जब भी हिंदू हितों की बात खड़ी हुई, यहां के शासकों ने सदैव सनातन के समर्थन में काम किए हैं।” ऐसे ही अनेक विचार साझा हुए शनिवार को जैपोर फ़ाउंडेशन द्वारा आर ए पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट के सभागर में आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार “ जयपुर रियासत का भारत को योगदान” में जिसमें देश भर के अनेक इतिहास विशेषज्ञ शामिल हुए।
इस अवसर पर कार्यक्रम सह संयोजक संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि सवाई जयसिंह ने जयपुर का नामकरण अपने नाम से नहीं किया बल्कि मुगलों पर विजय की स्मृति में इसका नाम “जय पुर “ रखा गया । जयपुर दुनिया का पहला सुनियोजित बसावट वाला शहर है जिसके निर्माण के लिए विद्याधर भट्टाचार्य ने तंत्र शास्त्र, शिल्पकला व वास्तु शास्त्र का अध्ययन कर शहर को बसाया।
जैपोर फाउंडेशन के अध्यक्ष सियाशरण लश्करी ने कहा कि यहाँ के कचरा प्रबंधन और जल निकासी की व्यवस्था इतनी उत्तम थी कि तत्कालीन समय में बाहर से आने वाले विदेशी पर्यटकों ने अपनी किताबों और यात्रावृत्तांतों में इस शहर का उल्लेख किया है। लश्करी ने यह भी कहा कि यहाँ के शासक हिंदू धर्म के ध्वज रक्षक थे।
सवाई जयसिंह ने जयपुर की नींव में गंगा जल का उपयोग किया। आमेर-जयपुर रियासत के दीवान(प्रधानमंत्री)पं.विद्याधर जी भट्टाचार्य की त्रिपोलिया बाज़ार में बनी हवेली जयपुर शहर का केंद्र थी और उसी के चारों और चौपड़ों का निर्माण हुआ। आज़ादी के समय भी यहाँ के राजाओं का योगदान सराहनीय रहा है। जयपुर दरबार ने ही कश्मीर के महाराज और हैदराबाद के शासकों को भारत में विलय के लिए तैयार किया।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर अभिमन्यु सिंह ने कहा कि 1665 में हुई “पुरंदर की संधि” जयपुर के शासकों की दूरदृष्टि का सबसे बड़ा उदाहरण है। मिर्ज़ा राज जयसिंह ने मराठा और मुगलों के बीच मध्यस्थता करके शिवाजी महाराज को इस संधि के लिए सहमत कराया जिसका इतिहास में बड़ा प्रभाव पड़ा। भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर के राजनीति विज्ञान के विद्वान आज भी इस समझौते को मास्टर स्ट्रोक मानते हैं और दुनिया भर के विश्वविद्यालयों में पुरंदर की संधि का अध्ययन अध्यापन किया जाता है।
इस ट्रीटी के तहत शिवाजी को पुरंदर सहित बत्तीस किलों को छोड़ने के लिए बाध्य किया गया। राजनीतिक और सैन्य शक्ति दोनों स्तर पर यह एक बड़ी उपलब्धि थी। यहाँ के राजा वीरता के साथ ही मित्रता और कूटनीति में पारंगत थे जिनका लोहा मुगलों से लेकर ब्रिटिश एम्पायर तक ने स्वीकार किया है। जयपुर के कछवाहों का इतिहास भारत के मध्यकाल में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। महाराजा मानसिंह ही थे जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में उस समय की पाँच ख़ूँख़ार अदिवासी कबीलों को हराकर वहाँ पचरंगा लहराया।
कुंवर रामसिंह के नेतृत्व में उज़्बेकिस्तान के बल्क में सैन्य अभियान चलाया गया था। कच्छावा नरेशों ने बंगाल , काबुल , अफ़ग़ान और मध्य एशिया तक अपनी तलवार का जलवा बिखेरा। धर्म के क्षेत्र में भी यहाँ के राजाओं का योगदान अतुलनीय है।
1568 में जब चित्तौड़गढ़ जल रहा था तब वहाँ के कुम्भ श्याम मंदिर से कृष्ण की प्रतिमा जिसकी पूजा महान संत मीरा बाई करती थी , को सुरक्षित निकालकर मानसिंह ने जयपुर के जगत शिरोमणि मंदिर में स्थापित किया। मुगलों के आक्रमण से बचाने के लिए कच्छवाहा नरेश ही वृंदावन से गोविंद देव जी की प्रतिमा को सुरक्षित निकालकर आमेर लेकर आए। ये उनकी धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता थी।
सुरेश ज्ञान विहार यूनिवर्सिटी के चांसलर सुनील शर्मा ने कहा कि मिर्जा मानसिंह के नेतृत्व में अकबर ने बंगाल और गुजरात फतह किया। कच्छवाह मुगलों के सर्वाधिक विश्वासपात्र रहे हैं। पुरी के जगन्नाथ मंदिर पर अफगान हमले को विफल करने का काम भी मानसिंह ने ही किया। उन्होंने कहा कि आज भारत में हिंदू धर्म बचा हुआ है तो उसके पीछे जयपुर रियासत का बहुत बड़ा योगदान है।
काशी विश्वनाथ के मंदिर के जीर्णोद्धार का काम भी मानसिंह ने ही किया। मुगल आधिपत्य के बावजूद भी मथुरा और वृंदावन के मंदिर यदि सुरक्षित बचे रहे तो इसका श्रेय भी जयपुर रियासत को जाता है।
इस रियासत में ही बिहारी ने सतसई की रचना की और यहीं नाभादास ने भक्तमाल रचा । उनका कहना था कि मुगल एम्पायर को खड़ा करने में जितना योगदान जयपुर रियासत का है लेकिन जब मुगल बर्बरता पर उतारू हो गए थे उनकी चूलें हिलाने का काम भी जयपुर रियासत ने ही किया और इसका श्रेय मिर्जा राजा मानसिंह , मिर्जा राजा जयसिंह और सवाई जय सिंह को जाता है।
कार्यक्रम सह संयोजक संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि सेमिनार में कोलकाता के हिंगलाज़ सिंह रत्नू, जयपुर के इतिहासकार गोविंद प्रसाद शर्मा, ठाकुर दुष्यंत सिंह नायला, ठाकुर मनोहर राघवेंद्र सिंह, ठाकुर अजीत सिंह,पिलवा, वरिष्ठ पत्रकार और जयपुर के इतिहास विशेषज्ञ जितेंद्र सिंह शेखावत, वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश भंडारी , राकेश जैन कोटखवदा, डॉ चाँदनी चौधरी, इतिहासकार नवीन रांका, देवेंद्र भगत आदि ने भी अपने विचार रखे।
जयपुर अलंकरण समारोह
समारोह के संयोजक कनोडिया पीजी महिला महाविद्यालय की इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. सुमन धनाका व सह संयोजक संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि जयपुर अलंकरण सम्मान समारोह में कला, संस्कृति , साहित्य, पत्रकारिता, इतिहास, महिला उद्यमिता, समाज सेवा, राजस्थानी सिनेमा व साहित्य सहित विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य करने वाले चालीस विशिष्ठ जनों को जयपुर अलंकरण से सम्मानित किया गया।
सह संयोजक संतोष कुमार शर्मा ने बताया कि जिनमें राजस्थानी साहित्य के लिए कोलकाता के हिंगलाज सिंह रत्नू , समाजसेवा में कोलकाता के विश्वनाथ चांडक, उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली के प्रोफेसर अभिमन्यु सिंह, स्कूल शिक्षा के लिए रेखा शर्मा , हिंदी साहित्य के लिए नवल पांडे , पत्रकारिता के लिए विनोद मित्त, दिनेश डाबी, धर्मेंद्र सिंघल,ओमवीर भार्गव, कला व संस्कृति के लिए जगदीप सिंह, ग्रामीण कला के लिए रामपाल कुमावत, रंगकर्म के लिए जितेंद्र शर्मा, मीनाकारी के लिए डॉ. इंद्रजीत सिंह कुदरत, प्रबंधन के लिए शिखा नैनावत, राजेंद्र कुमार हंस , समाज सेवा के लिए स्नेहा शर्मा, क्रांति शर्मा , रजनी शर्मा, रंगमंच के लिए भारत रत्न भार्गव , महिला उद्यमिता के लिए रघुश्री पोद्दार , ज्योतिष के लिए विजय पांडे , राजस्थानी सिनेमा के लिए डॉ.यशपाल चिराना, खेल के लिए विजेंद्र, संगीत के लिए गुलज़ार हुसैन व जितेंद्र राणा आदि शामिल है।