कला, संगीत और रंगमंच के त्रिवेणी संगम पर लगा लोक संस्कृति का मेला….
जवाहर कला केंद्र के 32वें स्थापना दिवस समारोह का रंगारंग आगाज…
प्रदर्शनी में दिखे 100 से अधिक लुप्तप्राय लोक वाद्य यंत्र..
पं. विश्व मोहन भट्ट, पं. सलिल भट्ट एवं अनवर खान मांगणियार की प्रस्तुतियों में खोए कलाप्रेमी…
बुधवार को लोक वाद्य यंत्र वादन प्रस्तुति से जमेगा रंग..
टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, 8 अप्रैल, 2025
गुलाबीनगर में कला, संगीत और रंगमंच का त्रिवेणी संगम जवाहर कला केंद्र का तीन दिवसीय 32वां स्थापना दिवस समारोह मंगलवार को शुरु हुआ। स्थापना दिवस के अवसर पर अपने अद्भुत शिल्प के लिए देशभर में मशहूर जवाहर कला केंद्र का परिसर कला के विविध रंगों से रोशन हो उठा।

लोक कलाओं की मनमोहक प्रस्तुतियों के बीच केन्द्र की वरिष्ठ लेखाधिकारी बिंदु भोभरिया ने डूडल वॉल पर भावनायें उकेर कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। लोक नृत्यों की उमंग के साथ शुरु हुआ समारोह देर शाम सुरों की महफिल के साथ परवान चढ़ा।

लुप्तप्राय लोक वाद्ययंत्रों की विशेष प्रदर्शनी में राजस्थान की समृद्ध संगीत परम्परा के दर्शन हुए तो चित्र प्रदर्शनियों में जवाहर कला केंद्र के पिछले 32 वर्ष के गौरवशाली पल जीवंत हुए।
दिन में दो बार मंचित हुए नाटक ‘मिराज़ मेलोडीज़’ में बाल मन की परतें खोलते हुए पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया। केंद्र परिसर पूरे दिन कलाप्रेमियों व कलाकारों से आबाद रहा।
बुधवार को मध्यवर्ती में शाम 7 बजे राजस्थान के 100 से अधिक लोक कलाकार अपने वाद्य यंत्रों के साथ सामूहिक वादन प्रस्तुति देंगे।
सबको भाया लोक वाद्यों का ‘अनहद नाद’

समारोह के तहत अलंकार दीर्घा में गुरुवार तक चलने वाली राजस्थान के लुप्तप्राय लोक वाद्य यंत्रों की विशेष प्रदर्शनी आयोजित की गई। जिसमें 100 से अधिक तत्, अनवद्य, सुषिर, घन लोक वाद्य यंत्रों का प्रदर्शन किया गया।
तनेराज सिंह सोढ़ा के क्यूरेशन में आयोजित प्रदर्शनी में बीकानेर, फलौदी, बाड़मेर, जैसलमेर, सिरोही, बांसवाड़ा, उदयपुर, बारां, भरतपुर, अलवर, भीलवाड़ा, किशनगढ़, अजमेर, बूंदी आदि क्षेत्रों के व सहरिया, गरासिया, मीणा, भील आदि जनजातियों के लोक कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा में अपने वाद्य यंत्रों का परिचय दिया।
बम नगाड़ा, रावणहत्था, गूजरी, ढोल, बकरी की मसक, पाबू जी का माटा, जोगिया सारंगी, धूम धड़ाम, जंतर, डफड़ा, सिंगी शंख, बीन, तूमड़ी, चंटर, पेडी, रणसिंह, नौबत, झांझ, शंख, सुरिंदा, नड़, नौबत, मुरली सहित अन्य वाद्य यंत्रों को तकनीकी स्तर पर जानने के साथ ही उनसे निकलते सुर-ताल से आगंतुक राजस्थानी लोक संस्कृति के सम्मोहन में खो गए।
पानी बचाने के संदेश के साथ खुलीं बाल मन की परतें

एनएसडी से प्रशिक्षित निर्देशिका इप्सिता चक्रवर्ती सिंह के निर्देशन में हुई नाट्य प्रस्तुति ‘मिराज मेलोडीज़’ में बाल मन की गुत्थियों को सुलझाते हुए पर्यावरण संरक्षण का महत्वपूर्ण संदेश दिया गया।
मिराज मेलोडीज़ एक बाल नाटक है, जो नील नामक एक बालक की रोमांचक यात्रा को प्रस्तुत करता है। नील एक सपनों की दुनिया में पहुँचता है, जहाँ पानी दुर्लभ है। वहाँ उसकी मुलाक़ात ओनी नामक एक दूसरी दुनिया की लड़की से होती है। दोनों को पता चलता है कि इस दुनिया में पानी नहीं है और लोग आँसू पीकर जीते हैं।

यहीं से नील और ओनी इस संकट का समाधान ढूँढ़ने की यात्रा पर निकलते हैं, ताकि इस सूखाग्रस्त भूमि में आशा ला सकें। जैसे-जैसे वे इस रहस्यमयी दुनिया के अद्भुत परिदृश्यों से होकर गुजरते हैं, उन्हें असाधारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। नाटक के माध्यम से पानी बचाने का बड़ा संदेश मनोरंजक अंदाज में दिया गया जिसे दर्शकों की भरपूर सराहना मिली।
‘डेज़र्ट स्लाइड’ में लोक संस्कृति और सुरों की जुगलबंदी
स्थापना दिवस समारोह की पहली शाम सुरों की महफिल से आबाद हुई। ग्रैमी अवॉर्ड विजेता, पद्मभूषण अलंकृत पं. विश्व मोहन भट्ट ने मोहन वीणा और तंत्री सम्राट पं. सलिल भट्ट ने सात्विक विणा के तारों पर अपनी अंगुलियों के जादू से सुरों का अनूठा संसार रचा। इसी मनमोहक धुन के साथ पद्मश्री अलंकृत उस्ताद अनवर खान मांगणियार, कुटले खान व समूह के कलाकारों ने राजस्थानी लोक संगीत की मधुरता से मुक्ताकाश में बड़ी संख्या में मौजूद श्रोताओं को मरुधरा की लोक संस्कृति के रंग से सराबोर कर दिया।
आज लोक वाद्य यंत्रों से सजेगी दिलकश सिम्फनी
महोत्सव के दूसरे दिन, बुधवार को मध्यवर्ती में शाम 7 बजे 100 से अधिक लोक कलाकार अपने वाद्य यंत्रों के साथ सामूहिक वादन प्रस्तुति देंगे। केन्द्र के 32 वर्षों के स्वर्णिम सफर को दर्शाने वाली विशेष चित्र प्रदर्शनी बुधवार व गुरुवार को भी जारी रहेगी।

