11 दिवसीय राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह और हस्तशिल्प मेले का सोमवार को आखिरी दिन
दीपमाला से फैलेगी उजास, शोभायात्रा से होगा उत्साह का संचार
रविवार को मध्यवर्ती व शिल्पग्राम में उमड़े हजारों दर्शक व खरीददार, 12 विधाओं की हुई रंगारंग प्रस्तुति
टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, 27 अक्टूबर, 2024
जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित 27वां लोकरंग महोत्सव अपने परवान पर रहा। महोत्सव के तहत आयोजित राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले और राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है।
भारत के विराट मनोरम सांस्कृतिक स्वरूप से साक्षात्कार कराने वाले लोकरंग महोत्सव का सोमवार को आखिरी दिन है। मध्यवर्ती में सोमवार को विशेष भारत मिलन प्रस्तुति होगी, जिससे सभी प्रदेशों से आए कलाकार एक साथ मंच पर आकर भारतीय संस्कृति के वैभव को साकार करेंगे।
इसी के साथ म्यूजिक सिम्फनी में दर्जनों लोक वाद्य यंत्रों की गूंज के साथ विशेष धुन सुनने को मिलेगी, दीपमाला से जहां उत्साह की रोशनी फैलेगी वहीं अंत में निकलने वाली शोभायात्रा में देश की विविधता की मनोरम झांकी देखने को मिलेगी।
रविवार को लोकरंग का 10वें दिन शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर मांगणियार कलाकारों का गायन, भजन गायन, भवाई, भपंग, तेरहताली, लोक गायन, गैर नृत्य की प्रस्तुति हुई।
वहीं, मध्यवर्ती के मंच पर राजस्थान के कलाकारों ने मशक वादन, कर्नाटक से जोगती नृत्य, हिमाचल प्रदेश से टेमरेल नृत्य व सिंह टू, मणिपुर से नागा नृत्य व ढोल चोलम, महाराष्ट्र से रेला नृत्य व कोली नृत्य, गुजरात से गोप रास व सिद्धि गोमा, असम से बीह और पंजाब से जिन्दवा की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम की शुरुआत शेखावाटी से आए कलाकारों ने मशक वादन के साथ की। जोगती नृत्य में येल्लमा देवी की आराधना करते हुए कलाकारों ने भक्ति व समर्पण का सुंदर प्रदर्शन किया। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति क्षेत्र के टेमरेल नृत्य ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। कलाकारों की आकर्षक वेशभूषा मन को मोहने वाली रही। टेमरेल शब्द का अर्थ है भरपूर, यह नृत्य समारोह में मंगलाचरण गीत पर स्वागत स्वरूप और खुशहाली की कामना के लिए किया जाता है।
नागा नृत्य में परंपरा और उसकी जीवंतता को दर्शाने का प्रयास किया गया। यह एक ऐसा नृत्य है जो खुशी और उमंग से भरा होता है। इस नृत्य में लड़के व लड़कियां मिलकर उत्सव का माहौल बनाते हैं।
रेला नृत्य में कलाकारों ने बांस पर संतुलन बनाकर नृत्य किया। यह गोंड जाति के कृषक समुदाय का नृत्य है जो धान की बुआई के समय की जाने वाली मेहनत की थकान को मिटाने के लिए किया जाता है।
गोप रास में गुजरात के कलाकारों ने एक अद्भुत प्रदर्शन किया, जो दर्शकों के दिलों को छू गया। इस नृत्य की विशेषता थी पिलर पर लटकी हुई कई रंग-बिरंगी डोरियाँ, जो इस प्रस्तुति को और भी जादुई बना रही थी।
कलाकारों ने नृत्य गतिशीलता के साथ उन डोरियों को बड़े ही कौशल से घुमाया और उन्हें गुथ दिया। कलाकार नृत्य में लयबद्धता से घूमते और फिर वापस लौटते, तो गुथी हुई डोरियां धीरे-धीरे खुलती गई। सिंह टू में वन्य जीवों से प्रेम को दर्शाया गया।
कोली नृत्य में मछुआरों द्वारा समुद्र की पूजा व आराधना का नृत्य साकार किया गया।
जिन्दवा में पंजाब की लोक नृत्य शैली को साकार किया गया जिसमें पुरुष संग महिलाओं ने नृत्य करते हुए नोंक-झोंक भरी को दर्शाया। आखिर में जोड़ियां बनाते हुए नृत्य को समाप्त किया गया।
गुजरात के कलाकारों की ओर से प्रस्तुत सिद्धि गोमा की रोमांचकारी प्रस्तुति के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
इस नृत्य में अद्भुत ताल और गति के साथ कलाकारों ने दर्शकों का मनोरंजन किया।
700 सालों से गुजरात में रह रही अफ्रीकन जनजाति के कलाकार यह नृत्य करते हैं। हवा में नारियल उछाल कर उन्हें फोड़ते कलाकार और कलाकारों के मुंह से निकली आग की लपटों ने सभी को रोमांच से भर दिया।