राजस्थान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के 40 लाख हुए मंजूर, प्रोग्राम 5 लाख में करवा लिया…

पिछले वर्ष 25 लाख मंजूर, प्रोग्राम 5 लाख में करवाया

राजस्थान विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह आयोजित, नैतिक मूल्य भारतीय शिक्षा का मूल आधार, नई शिक्षा नीति इसी की संवाहक- राज्यपाल

टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, 15 मई, 2025

राजस्थान विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में विगत दो वर्षों से फाइनेंस की बड़ी हेर फेर देखने में आ रही है। इसके तहत विगत वर्ष 2024 में कन्वोकेशन सेंटर में आयोजित होने वाले दीक्षांत समारोह के लिए जहां 25 लाख रुपए मंजूर हुए थे। वही, कुलपति, राजस्थान विश्वविद्यालय में अपने स्तर पर निर्णय लेते हुए दीक्षांत समारोह राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित करवाया था। जिसका खर्च लगभग 5 लाख रुपए के आसपास था। वही, गुरुवार को आयोजित दीक्षांत समारोह के लिए भी पहले कन्वोकेशन सेंटर के नाम पर ही फाइल चली और इस बार 40 लाख रुपए मंजूर हुए, लेकिन,एन वक्त पर एक बार फिर कुलपति ने अपने निर्णय अनुसार दीक्षांत समारोह राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में ही आयोजित करवाया। जिसका खर्च लगभग 5 लाख रुपए आया। लाखों रुपए की इस हेर-फेर में आखिर कुलपति का क्या व्यक्तिगत रुझान है! यह जांच का विषय है! जबकि छात्रों की ओर से लगातार 2 साल से यह दबाव बनाया जा रहा था कि दीक्षांत समारोह राजस्थान विश्वविद्यालय परिसर में स्थित ही कन्वोकेशन सेंटर में आयोजित किया जावे। छात्रों के दबाव के बावजूद कुलपति ने अपने स्तर पर निर्णय लेते हुए यह समारोह विश्वविद्यालय के बड़े कन्वोकेशन सेंटर के स्थान पर एक छोटे से राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर के सभागार में आयोजित करवाया। छात्रों की मांग है कि लाखों रुपए की इस हेर-फेर में राजभवन उच्च स्तरीय जांच समिति गठित कर कुलपति की जांच करें।
यही, नहीं, दीक्षांत समारोह के समापन समारोह के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस में खाना रखा गया था। लेकिन, यह बड़ा दुर्भाग्य रहा कि खाने के लिए एक-एक रोटी, दाल, सब्जी के लिए भी प्रोफेसर, डीन, विभाग अध्यक्ष को छीना झपटी करनी पड़ी। इस स्थान पर छात्रों का प्रवेश नहीं था।


नैतिक मूल्य भारतीय शिक्षा का मूल आधार, नई शिक्षा नीति इसी की संवाहक
राज्यपाल हरिभाऊ बागडे ने कहा कि नैतिक मूल्य भारतीय संस्कृति का प्रमुख आधार रहा है। इन मूल्यों से दूर करने के लिए अंग्रेज शासन में लॉर्ड मैकाले ने हमारे यहां अंग्रेजी शिक्षा पद्धति लागू की। इससे राष्ट्रवासियों में गुलाम मानसिकता विकसित हुई। उन्होंने कहा कि विनोबा भावे ने कहा था कि आजादी मिलने के बाद जिस तरह से देश का झण्डा बदला गया वैसे ही यहां की शिक्षा नीति बदलनी चाहिए थी। पर ऐसा नहीं हुआ। इसी आलोक में अब एक हजार शिक्षाविदों ने मिलकर देश में नई शिक्षा नीति तैयार की है। यह पूरी तरह से भारतीयता से ओतप्रोत नैतिक मूल्यों की संवाहक है। इसमें भारतीय संस्कृति और उदात्त जीवन मूल्यों पर ही जोर है। शिक्षकों को चाहिए कि वे इस नीति के आलोक में विद्यार्थियों को शिक्षित व दीक्षित करें।
राज्यपाल बागडे गुरुवार को राजस्थान विश्वविद्यालय के 34 वें दीक्षांत समारोह में संबोधित कर रहे थे।
राज्यपाल ने समारोह में स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में 75 प्रतिशत से अधिक संख्या बालिकाओं की रहने पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि अब लड़कियां आधी आबादी के गणित को पार कर उपलब्धियों का इतिहास रच रही है। उन्होंने महर्षि अरविंद की चर्चा करते हुए कहा कि अंतर मन को जागृत करने पर जोर देते हुए अरविंद ने बच्चों की बौद्धिक क्षमता बढ़ाए जाने की बात कही थी। पंडित नेहरू ने डिस्कवरी ऑफ इंडिया में इसका उल्लेख किया है। हमारी नई शिक्षा नीति इसी दृष्टि की पूर्ति करने वाली है।
उन्होंने कहा कि भारत ने ही विश्व को सबसे पहले जीरो का यानी दशमलव का ज्ञान दिया। इसी से विश्व आगे बढ़ा। भास्काराचार्य और उनकी पुत्री लीलावती का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि पूरे विश्व को गुरूत्वाकर्षण का वास्तविक ज्ञान भारत की देन है। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में जब गए तो मात्र 30 साल के थे। इस आयु में उन्होंने पूरे विश्व में भारत की धर्म ध्वजा फहराई। झांसी की रानी ने 20 वर्ष की आयु में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध लड़ा। यह महान चरित्र हमारे विद्यार्थियों लिए प्रेरणास्पद है। उन्होंने डिग्री और पदक धारकों को अर्जित शिक्षा का राष्ट्र के उत्थान में उपयोग करने का आह्वान किया।
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि राजस्थान में विश्वविद्यालय में कुलपति के स्थान पर अब कुलगुरु की परंपरा के आदेश जारी किए गए हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि कुलगुरु शब्द में ही शिक्षा का गौरव निहित है। देवनानी ने कहा है कि हमारी भारतीय ज्ञान प्रणाली आज भी प्रासंगिक है। प्राचीन काल से चली आ रही इस समृद्ध और व्यापक ज्ञान प्रणाली ने शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और दर्शन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक योगदान किया है। उन्होंने युवाओं का आव्हान किया कि वे शील संस्कार और शालीनता के साथ स्वावलम्बी बने।
देवनानी ने कहा कि प्राचीन भारत में शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं था बल्कि स्वयं की पूर्ण प्राप्ति के लिए था। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी जैसे प्राचीन भारत के विश्वस्तरीय संस्थानों ने बहु-विषयक शिक्षण और अनुसंधान के उच्चतम मानक स्थापित किए। चरक, सुश्रुत, आर्यभट्ट जैसे अनगिनत महान विद्धवानों ने विभिन्न क्षेत्रों में विश्व को महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कहा कि समृद्ध विरासत को भावी पीढियों के लिए पोषित और संरक्षित करना होगा ताकि शोध और संवर्धन में नये प्रयोग किये जा सके। देवनानी ने कहा कि भारत विश्व गुरु था, है और रहेगा।
देवनानी ने कहा कि भारतीय विज्ञान का भारतीय सेनाओं ने ऑपरेशन सिन्दूर में उपयोग किया।
उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने विकसित भारत के लिए उच्च शिक्षा की महती भूमिका बताते हुए इसके लिए सभी को मिलकर कार्य करने का आह्वान किया।
उत्तरप्रदेश के राज्यसभा सांसद अरुण सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना द्वारा की गई कार्यवाही की चर्चा करते हुए कहा कि यह समर्थ, सशक्त नया भारत है।
कुलगुरु डॉ. अल्पना कटेजा ने विश्वविद्यालय का प्रगति प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इससे पहले राज्यपाल ने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को पदक और उपाधियां प्रदान की।
इनका कहना है :-
राजस्थान विश्वविद्यालय के हजारों छात्रों की लगातार मांग रही है कि दीक्षांत समारोह कन्वोकेशन सेंटर में ही आयोजित हो, जिसे करोड़ो रूपये खर्च कर बनाया गया है। लेकिन, कुलपति अल्पना कटेजा की तानाशाही ने छात्रों की मांग को कुचल दिया है। ऊपर से लाखों रुपये की हेर-फेर में भी कुलपति शामिल है, जिसकी उच्च स्तरीय जांच राज्यपाल की ओर से होनी चाहिए। यदि वहां से जांच नहीं होती है, तो ये मामला हम प्रधानमंत्री व केन्दीय शिक्षा मंत्री तक पहुंचाएंगे।

  • डॉ.सज्जन कुमार सैनी, पोस्ट डॉक्टरल फैलो, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर