टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
दिल्ली, 17 मई, 2025
रत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुआ सैन्य संघर्ष अब वैश्विक रणनीतिक दिलचस्पी का विषय बन चुका है। इस संघर्ष में पाकिस्तान ने चीन से मिली एडवांस PL-15 एयर-टू-एयर मिसाइल का उपयोग किया, जिसे भारतीय वायुसेना ने सफलतापूर्वक निष्क्रिय कर दिया।
इस मिसाइल के मलबे को अब अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड (फाइव आइज इंटेलिजेंस अलायंस) के साथ-साथ फ्रांस और जापान भी हासिल करना चाहते हैं।
होशियारपुर (पंजाब) में मिले इस PL-15 मिसाइल के टुकड़े वैश्विक सैन्य ताकतों के लिए किसी खजाने से कम नहीं माने जा रहे हैं। दुनिया की सबसे प्रभावशाली खुफिया एजेंसियां अब भारत से इस मलबे की मांग कर रही हैं ताकि चीन की सैन्य तकनीक और युद्ध क्षमता का गहराई से विश्लेषण किया जा सके।
मिलिट्री स्ट्रैटेजी का अहम जरिया
6 से 10 मई के बीच भारत-पाकिस्तान के संघर्ष के दौरान पाकिस्तान ने J-10C और JF-17 लड़ाकू विमानों से PL-15E मिसाइलों का इस्तेमाल किया। यह पहली बार था जब इस मिसाइल का युद्ध में उपयोग किया गया। भारत में गिरी मिसाइल के टुकड़े अब दुनिया की बड़ी ताकतों के लिए रिसर्च और मिलिट्री स्ट्रैटेजी का अहम जरिया बन गए हैं। इस एडवांस तकनीक से लैस मिसाइल को लेकर चीन के विरोधी देश, खासतौर पर अमेरिका, बेहद सतर्क हैं।
फ्रांस और जापान क्यों कर रहे PL-15 के मलबे की मांग?
PL-15 चीन की एयर डॉमिनेंस रणनीति का अहम हिस्सा है। इसे अमेरिका की AIM-120D और यूरोप की MBDA Meteor मिसाइलों के टक्कर में तैयार किया गया है। इसमें AESA रडार सीकर, टू-वे डेटा लिंक और डुअल-पल्स मोटर जैसी एडवांस टेक्नोलॉजी शामिल है। फाइव आइज देशों को चीन की गाइडेंस सिस्टम, प्रपल्जन टेक्नोलॉजी और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर क्षमता को समझने का मौका मिलेगा। अमेरिका को इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के खिलाफ रणनीतिक लाभ मिलेगा। फ्रांस को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि उसके राफेल जेट चीनी हथियारों से लैस विरोधियों के खिलाफ प्रभावी बने रहें। जापान और अन्य मित्र राष्ट्रों को भी इंडो-पैसिफिक में चीन की बढ़ती मौजूदगी से निपटने के लिए टेक्नोलॉजी इनसाइट्स मिल सकते हैं।
PL-15 मिसाइल की ताकत क्या है?
PL-15 को चीन की एविएशन इंडस्ट्री कॉरपोरेशन (AVIC) ने विकसित किया है। यह लंबी दूरी की हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइल है, जो आधुनिक युद्ध तकनीकों से लैस है।
AESA रडार सीकर इसे लक्ष्य की सटीक पहचान और ट्रैकिंग की क्षमता देता है।
डुअल-पल्स रॉकेट मोटर इसकी रेंज और गति को बढ़ाता है।
रेंज: चीनी घरेलू वर्जन की रेंज 200-300 किलोमीटर तक है, जबकि पाकिस्तान को दिया गया एक्सपोर्ट वर्जन PL-15E लगभग 145 किलोमीटर तक मार कर सकता है।
यह मिसाइल AWACS (हवाई चेतावनी प्रणाली) और दुश्मन के लड़ाकू विमानों को निशाना बनाने में सक्षम है।
क्या भारत साझा करेगा यह ‘खजाना’?
अब सवाल यह है कि भारत इस PL-15 मिसाइल के मलबे को साझा करेगा या नहीं। यह फैसला रणनीतिक और कूटनीतिक दोनों दृष्टि से बेहद अहम होगा। भारत चाहे तो इसे अपने रक्षा अनुसंधान के लिए भी इस्तेमाल कर सकता है, या फिर मित्र देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के लिए साझा कर सकता है।
PL-15 मिसाइल का मलबा केवल एक मिसाइल का टूटाफूटा हिस्सा नहीं है, यह चीन की सैन्य रणनीति को समझने की एक दुर्लभ चाबी है। आने वाले समय में यह भारत के लिए रक्षा क्षेत्र में बड़ी सौदेबाज़ी और रणनीतिक बढ़त का जरिया बन सकता है।

