राजा दिलीप के पुत्र रघु से ही नाम हुआ “रघुवंश”…
राजा दिलीप ने नंदिनी गाय की सेवा करके प्राप्त किया संतान प्राप्ति का वरदान….
लुप्त होती पौराणिक गोबर लेपन पद्धति पर माँडना कला द्वारा पेंटिग बनाकर हर घर में पोजिटिवी लाना ही मेरा उद्देश्य….रेखा अग्रवाल..
गाय की सेवा करने पर बढ़ता है वंश..
टुडे इंडिया ख़बर / संतोष कुमार शर्मा
दिल्ली, 28 दिसंबर, 2024
जिस रघुवंश में भगवान राम पैदा हुए वे, रघु राजा दिलीप के पुत्र थे। उन्हें कामधेनु को प्रणाम नहीं करने पर उन्हें संतानहीन होने का श्राप मिला था। बाद में उन्होंने नन्दिनी गाय की सेवा कर पुत्र प्राप्त किया था। यह कहना है देश की ख्याति प्राप्त लोककला मांढना शैली की वरिष्ठ चित्रकार रेखा अग्रवाल का।

राजा दिलीप ने नंदिनी गाय की सेवा करके संतान प्राप्ति का वरदान पाया था….
प्रदेश की वरिष्ठ चित्रकार रेखा अग्रवाल ने बताया कि हिंदू शास्त्रों व पुराणों में गो सेवा की बहुत महिमा बताई है।
इनमें एक कथा भगवान राम के वंशज राजा दिलीप की भी है, जिन्होंने गाय की सेवा करके ही रघु जैसे प्रतापी पुत्र को जन्म दिया था।
इन्हीं रघु से भगवान राम का वंश रघुवंश कहलाया था।

रेखा अग्रवाल ने कहा कि, महाराजा दिलीप रघुवंश के प्रतापी राजा थे। निसंतान होने पर राजा दिलीप की ओर से अवसाद में आना, अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के आश्रम जाकर उनसे सुझाव लेना और फिर कामधेनु की पुत्री नंदिनी गाय की तन-मन से सेवा करने की अद्वितीय सम्पूर्ण कथा के सार को मैंने अपनी चित्रांकन वाली पेंटिंग में उकेरा है।
बहुत ही सूक्ष्म कला की इस बानगी में एक ही रेखांकन में राजा दिलीप की गौ सेवा का अद्भुत चित्रण किया है।

रेखा अग्रवाल ने यह सम्पूर्ण कथा सार प्राचीन मांढना शैली में बनाया है। जिस पर उन्हें कालिदास अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है।
उन्होंने बताया कि राजा दिलीप की गौ सेवा और पुत्र प्राप्ति की मिसाल अनोखी गया।
मेरे कला सृजन में कालिदास द्वारा लिखित नाटिका रघुवंशम एवं कुमारसंभव में से कुछ झलकियां लोक कला मांडना द्वारा गो लेपन पद्धति पर दर्शाने की कोशिश की है। रघुवंशम कथा में नंदिनी की सेवा को चित्रित किया है और गाय के अंदर राजा दिलीप एवं सुदक्षिणा की पुत्र प्राप्त की इच्छा को, किस तरह से गुरु वशिष्ट के आश्रम में गाय की सेवा करने पर पुण्य फल का चित्रण को दर्शाया है। दूसरी पेंटिंग में भरत राम की चरण पादुका लेकर आते हैं उन्हें मध्य में बनाया है। साथ में छोटे-छोटे चित्र हैं उन्हें रघुवंशम के पात्रों के रूप में बनाया है राम वनवास से लौटते हुए तो कहीं सीता की अग्नि परीक्षा तो कहीं श्रवण कुमार का दशरथ द्वारा बाण लगने पर वध दिखाया है तो कहीं केवट द्वारा नाव चलाना दिखाया है और पूरा वृतांत में रामायण की कथा को दर्शाने की कोशिश की है।

कुमारसंभव नाटिका में शिव पार्वती की कथा का वर्णन किया है किस तरह से पार्वती माता पंचांग्नि तप द्वारा शिव को प्रसन्न करके उनसे विवाह किया और कैलाश पर लौटी।
मेरे कला सृजन को 3 वर्ष से लगातार नेशनल कालिदास चित्र एवं मूर्ति कला प्रतियोगिता में प्रदर्शनी के लिए चुना गया है। साथ में गणेश सीरीज भी चल रही है। मैं अनवृत 35 वर्षों से कला सृजन का कार्य कर रही हूं।
ये है “रघुवंश” बनने की कथा
उन्होंने बताया कि एक बार दानवों से युद्ध में अपने मित्र इंद्र की सहायता कर वे एक समय पृथ्वी पर लौट रहे थे, तभी रास्ते में उन्हें कामधेनु मिली। लेकिन जल्दबाजी में राजा दिलीप ने उन्हें प्रणाम नहीं किया। इस पर कामधेनु ने नाराज होकर राजा दिलीप को संतानहीन होने का श्राप दे दिया।
जिसका राजा दिलीप को पता नहीं लगा। लंबे समय बाद भी जब कोई संतान नहीं हुई तो वे अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ के पास गए।
जहां संतान प्राप्ति का उपाय पूछने पर महर्षि ने गौ माता के अपमान को उनकी संतान प्राप्ति में बाधा बताया।
उपाय के रूप में उन्होंने उनके आश्रम में रह रही कामधेनु की पुत्री नंदिनी गाय की सेवा की सलाह दी।
महर्षि की आज्ञा पाकर राजा दिलीप व उनकी रानी सुदक्षिणा नंदिनी की मन लगाकर सेवा करने लगे। सुबह शाम रानी सहित पूजा करने के अलावा राजा उसे खुद वन में चराने ले जाते। छाया की तरह वे दिनभर उसके साथ ही रहते।
एक दिन वन में चरते समय शेर ने नंदिनी को पंजों में जकड़ लिया। ये देख राजा दिलीप ने सिंह को मारने के लिए अपने तरकश से तीर निकालना चाहा, पर तभी उनके हाथ बीच में अटक गए। शरीर ने क्रिया करना बंद कर दिया।
इधर, नंदिनी राजा दिलीप को आर्त भाव से देखते हुए छटपटा रही थी, जिसे देख राजा की आंखों से भी दया के आंसू निकल पड़े।
उन्होंने सिंह से प्रार्थना की कि वे नंदिनी को छोड़कर बदले में उन्हें खा ले। बहुत प्रार्थना व तर्क– वितर्क के बाद सिंह इसके लिए तैयार हुआ, जिसके बाद राजा दिलीप ने अपने शस्त्रों को फेंक खुद को सिंह के सामने प्रस्तुत कर दिया।
वे सिर झुकाकर सिंह से खाए जाने का इंतजार ही कर रहे थे कि तभी देवताओं ने उन पर फूलों की बरसात कर दी। पलभर में ही वह सिंह गायब हो गया। सिंह को अपनी ही माया बताकर नंदिनी ने राजा की गुरु भक्ति व दया भाव पर प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा।
पुत्र प्राप्ति की इच्छा जताने पर नंदिनी ने उन्हें अपना दूध पीने की आज्ञा के साथ पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया।
इसके बाद राजा ने बछड़े के पीने तथा अग्निहोत्र से बचे दूध का महर्षि की आज्ञा पाकर सेवन किया। जिसके बाद उन्हें रघु जैसे महान पुत्र प्राप्त हुए, जिनके नाम से ही उनके वंश का नाम रघुवंश हुआ।

