दोपहर बाद क्यूरेटर ने प्रदर्षित वाद्ययंत्रों के साथ ही कलाकारों का रिहर्सल किया

प्रदर्शनी हॉल अलंकार हो गया वाद्ययंत्रों से खाली…क्यूरेटर को लाखों रुपये का हुआ भुगतान

100 से अधिक लोक वाद्य यंत्रों ने रचा सुर-ताल का जादुई संसार

टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, 9 अप्रैल, 2025

क्यूरेटर की एक बड़ी गलती से जेकेके में जवाहर कला केंद्र के 32वें स्थापना दिवस पर अलंकार कला दीर्घा में आयोजित वाद्ययंत्र प्रदर्शनी से सैकड़ों दर्शक रूबरू नहीं हो पाए।
ये है मामला
जवाहर कला केंद्र के 32 से स्थापना दिवस पर केंद्र की ओर से अलंकार कालाढ्रीका में राजस्थान के विभिन्न जिलों के कलाकार समुदायों और कलाकारों के दुर्लभ वाद्य यंत्र की एक प्रदर्शनी संजोई गई थी। जिसे पहले दिन देखने के लिए कम ही दर्शक आए थे। हालांकि, दूसरे दिन न्यूज़ पेपर व डिजिटल मीडिया की न्यूज़ देखकर सैकड़ों दर्शक उन फोक वाद्ययंत्रों को देखने के लिए दोपहर बाद जेकेके पहुंचे। लेकिन, प्रदर्शनी क्यूरेटर तनेराज सिंह सोढ़ा की एक बड़ी गलती की वजह से दर्शक अलंकार कला दीर्घा से निराश होकर घरों को लौट गए। हुए ये कि क्यूरेटर सोढ़ा ने राज्य के विभिन्न स्थानों से आए लोक कलाकारों से उन्हीं वाद्ययंत्रों से शाम को होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम की रिहर्सल करवा ली, जो कला दीर्घा में दर्शकों को देखने के लिए संजोई गए थे। लंबी समयावधि की रिहर्सल के दौरान वाद्ययंत्रों की कला दीर्घा अलंकार वाद्ययंत्रों से खाली हो गई। जो दर्शक प्रदर्शनी देखने जेकेके पहुंचे, उन्हें अलंकार कलादीर्घा को खाली देखकर दुःख हुआ और वे निराश होकर लौट गए।
वैशाली नगर से आए संजय राठौड़ व परिवार ने कहा कि हम राजस्थान के वाद्ययंत्रों को देखने ही पहली बार जेकेके आए लेकिन, यहां अलंकार गैलरी वाद्ययंत्रों से खाली मिली। वही, मानसरोवर से आए मिथिलेश सक्सेना ने कहा कि जेकेके प्रशासन को ऐसी प्रदर्शनी पर लाखों रुपए व्यर्थ में खर्च नहीं करने चाहिए थे। सैकड़ों दर्शक बिना वाद्ययंत्र प्रदर्शनी देखे ही जा रहे है।


जवाहर कला केंद्र का मध्यवर्ती बुधवार शाम राजस्थानी लोक वाद्य यंत्रों से निकली सुर-ताल की अठखेलियों से आबाद हो उठा। जवाहर कला केंद्र के 32वें स्थापना दिवस समारोह के तहत दूसरे दिन प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों व जनजातियों के लोक वाद्य यंत्रों का जादू शहरवासियों को देखने को मिला। शाम के समय हल्की बारिश से तरोताजा हुए माहौल में जब लोक कलाकारों ने वाद्य यंत्रों पर अपने सधे हुए हाथों का जादू बिखेरा तो जेकेके का पूरा प्रांगण राजस्थानी लोक संस्कृति में रचे-बसे संगीत के रंगों से सराबोर हो गया।
प्रदेशभर से आए कलाकारों ने सौ से अधिक वाद्य यंत्र बजाए। संगीत समूह के रूप में वादन प्रस्तुति व सभी कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति का प्रांगण में मौजूद श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया व कलाकारों को दाद दी।
इन वाद्य यंत्रों ने सजाई शाम
कार्यक्रम में बम नगाड़ा, रावणहत्था, गूजरी, ढोल, बकरी की मसक, पाबू जी का माटा, जोगिया सारंगी, धूम धड़ाम, जंतर, डफड़ा, सिंगी, बीन, तूमड़ी, चंटर, पेडी, रणसिंह, नौबत, झांझ, शंख, सुरिंदा, नड़, नौबत, मुरली, सुरिंदा, भपंग सहित 100 से अधिक वाद्य यंत्रों का वादन किया गया।
प्रदर्शनी में लोक संस्कृति की मनोरम झलक
इससे पहले अलंकार दीर्घा में चल रही लोक वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी में बुधवार को भी बड़ी संख्या में दर्शक पहुंचे। प्रदर्शनी स्थल पर कलाकारों ने दिन भर आने वाले कलारसिकों को अपने वाद्य यंत्रों की तकनीक व इतिहास के बारे में जानकारी देने के साथ ही वादन भी किया। स्थापना दिवस समारोह का गुरुवार को समापन होगा।
डूडल वॉल बनी पसंदीदा स्पॉट, प्रदर्शनी में दिखा जेकेके का सफर
जेकेके के डोम एरिया में बनाई गई डूडल वॉल पर दिनभर कलाकारों ने अपनी भावनाओं को चित्रों के माध्यम से उकेरा। केंद्र में नियमित आने वाले कलाकारों के साथ ही केंद्र को देखने आए लोगों ने भी डूडल वॉल पर रंगों की कलाकारी कर चित्र बनाए।
डोम एरिया में ही जवाहर कला केंद्र के इतिहास, केंद्र में हुए कार्यक्रमो, गतिविधियों व केंद्र की विशेषताओं को ऑडियो-विजुअल माध्यम से दर्शाया गया।
इसके साथ ही सुरेख व सुकृति कला दीर्घा में चल रही चित्र प्रदर्शनी ‘जेकेके का सफर’ मंगलवार को भी जारी रही। बड़ी संख्या में लोगों ने प्रदर्शनी के माध्यम से जेकेके से जुड़ी जानकारियां प्राप्त की।