टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
जयपुर, 28 दिसंबर, 2024

राजस्थान सरकार की कैबिनेट बैठक के बाद 9 नए जिलों को खत्म करने के जनविरोधी निर्णय पर नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि यह भाजपा के दोहरे चरित्र और प्रतिशोध की राजनीति का उदाहरण है।
जूली ने कहा कि इसी वर्ष अगस्त के महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लद्दाख जैसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश में 5 नये छोटे जिले बनाने की घोषणा की थी और राजस्थान जो की देश का सबसे बड़ा राज्य है उसमें भाजपा की सरकार ने ही 9 जिले खत्म कर दिए हैं। यह फैसला निंदनीय एवं जनविरोधी है।
कांग्रेस पार्टी इस निर्णय का कड़ा विरोध करती है एवं आने वाले दिनों में सदन से लेकर सड़क तक आंदोलन करेगी।
नेता प्रतिपक्ष जूली ने कहा कि जिला बनाने का आधार कोई राजनीतिक नहीं बल्कि वरिष्ठ IAS अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई कमिटी की रिपोर्ट थी जिसको दर्जनों जिलों के प्रतिवेदन प्राप्त हुए।
इन्हीं प्रतिवेदनों का परीक्षण कर समिति ने अपनी रिपोर्ट दी जिसके आधार पर नए जिले बनाने का निर्णय किया गया था। यह कहना पूर्णत: अनुचित है कि राजस्थान में जिलों की आवश्यकता नहीं है।
मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया, परन्तु प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन उस अनुपात में नहीं हुआ था। राजस्थान से छोटा होने के बाद भी मध्य प्रदेश में 53 जिले हैं।
नए जिलों के गठन से पूर्व राजस्थान में हर जिले की औसत आबाादी 35.42 लाख व क्षेत्रफल 12,147 वर्ग किलोमीटर था जबकि नए जिले बनने के बाद जिलों की औसत आबादी 15.35 लाख व क्षेत्रफल 5268 वर्ग किलोमीटर हो गया था।
जिले की आबादी व क्षेत्र कम होने से शासन-प्रशासन की पहुंच बेहतर होती है एवं सुविधाओं व योजनाओं की बेहतर डिलीवरी सुनिश्चित हो पाती है। छोटी प्रशासनिक इकाई होने पर जनता की प्रतिवेदनाओं का निस्तारण भी शीघ्रता से होता है।
नेता प्रतिपक्ष जूली ने कहा कि भाजपा सरकार द्वारा जिन जिलों को छोटा होने का तर्क देकर रद्द किया है वो भी अनुचित है।
हर जिले की अपनी परिस्थितियां होती हैं। गुजरात के डांग (सवा दो लाख), पोरबंदर (पौने छह लाख) एवं नर्बदा (पौने छह लाख), हरियाणा के पंचकुला (साढ़े पांच लाख) एवं चरखी दादरी (लगभग पांच लाख), पंजाब के मलेरकोटला (लगभग सवा चार लाख), बरनाला(लगभग छह लाथ) एवं फतेहगढ़ साहिब (छह लाख) जैसे कम आबादी वाले जिले भी हैं।
सरकार की तरफ से एक तर्क यह दिया जा रहा है कि एक जिले में कम से कम 3 विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए जबकि भाजपा द्वारा 2007 में बनाए गए प्रतापगढ़ मे परिसीमन के बावजूद भी केवल दो विधानसभा क्षेत्र हैं।