टुडे इंडिया ख़बर / संतोष वशिष्ठ
दिल्ली, 5 अप्रैल, 2025
शिव पुराण 18 महापुराणों में से सबसे महत्वपूर्ण एक पुराण है। इस पुराण में 7 संहिता है और कुल 24 हजार श्लोक में शिवजी की भक्ति से संबंधित कथा, पूजाविधि, शिवलिंग की पूजा का रहस्य समाहित है।
पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ में शिवजी ने सौ करोड़ श्लोकों से सभी पुराणों की रचना की थी। द्वापर युग में महर्षि वेदव्यासजी ने इन पुराणों को संक्षिप्त करके 18 भागों में बांटा। शिव की लीला कथाओं पर आधारित शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा का रहस्य और शिवरात्रि के महत्व का जो वर्णन किया गया है, वह हर शिव भक्त को जानना चाहिए। जिसने इस शिवलिंग की पूजा का रहस्य और शिवरात्रि के महत्व को जान लिया है वह शिवभक्त शिवजी का प्रिय भक्त होकर शिव का हो गया है और भक्ति में लीन ऐसा व्यक्ति शिवलोक में जाने का अधिकारी हो गया है।

देश के ख्यात ज्योतिषाचार्य, वास्तुविद व आध्यात्मिक गुरु डॉ. अमित व्यास ने बताया कि शिव पुराण को हिन्दू धर्म में पुराणों को उच्च महत्व दिया गया है। पुराणों में भारतीय संस्कृति के आदर्शों, रीति-रिवाजों और परंपराओं का विवरण होता है। ये आदर्श और परंपराएं समाज को एक संजीवनी और आत्मविश्वास प्रदान करती हैं।
भारत समन्वय परिवार सनातन धर्म की अति महत्वपूर्ण धरोहर अर्थात हमारे पुराणों का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है।

शिव पुराण की विशेषताएँ
महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित शिव पुराण सभी पुराणों में सर्वाधिक अध्ययन किए जाने वाला पुराण है। इस पुराण का संबंध शैव मत से है। इस पुराण में आठ खण्ड और 24,000 श्लोक है। इस पुराण में प्रमुख रूप से शिव भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। भगवान शिव सदैव लोकोपकारी और हितकारी हैं। त्रिदेवों में इन्हें संघार(संहार) का देवता माना गया है। जटाजूट धारी, गले में लिपटे नाग और रुद्राक्ष की मालाएं, शरीर पर बाघंबर, चिता की भस्म लगाए, हाथ मे त्रिशूल, सारे विश्व को डमरू की कर्णभेदी ध्वनि से नचाते रहते हैं, इसलिए उन्हे ‘नटराज’ की संज्ञा भी दी गई है। उनकी वेशभूषा से ‘जीवन’ और ‘मृत्यू’ का भेद होता है। शीश पर गंगा और चंद्र-जीवन एवं कला के घोटक हैं। शरीर पर चित की भस्म – मृत्यू का प्रतीक है। यह जीवन गंगा की धारा की भांति चलते हुए अंत में मृत्यु सागर में लीन हो जाता है।
शिव पुराण में बताया गया है कि भगवान शिव की पूजा में 6 चीजों का ध्यान रखना चाहिए। इनसे आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। शिवजी का अभिषेक करने से मनुष्य की आत्मशुद्धि होती है। गंध चंदन लेपन से पुण्य की प्राप्ति होती है। नैवेद्य अर्पित करने से संतुष्टि और आयु की वृद्धि होती है। शिवजी को धूप दिखाने से धन की प्राप्ति होती है। भोलेनाथ को दीप दिखाने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। पान यानी तांबूल अर्पित करने से तमाम सांसारिक भोग की प्राप्ति होती है।
तुलसीदास का दृष्टिकोण
‘रामचरित मानस’ में तुलसीदास ने जिन्हें ‘अशिव वेषधारी’ कहा है, वे जन-सुलभ तथा आडंबर विहीन वेश को ही धारण करने वाले हैं। ऐसे परोपकारी और अपरिग्रही शिव का चरित्र वर्णित करने के लिए ही इस पुराण की रचना की गई है।
इस पुराण में कलयुग के पापकर्म से ग्रसित व्यक्ति को ‘मुक्ति’ के लिए शिव-भक्ति का मार्ग सुझाया गया है।
शिव पुराण की संहिताएँ
इस पुराण में आठ संहिताओं का उल्लेख है, जो मोक्ष कारक है:
1. विद्येश्वर संहिता
इस संहिता में शिवरात्रि व्रत, पंचकृत्य, ओंकार का महत्व, शिवलिंग की पूजा और दान के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। शिव की भस्म और रुद्राक्ष का महत्व भी बताया गया है। इस संहिता में उल्लेख है की अर्जित धन के तीन भाग करके – एक भाग धन वृद्धि में, एक भाग उपभोग में और एक भाग धर्म-कर्म में व्यय करना चाहिए।
2. रुद्र संहिता
रुद्र संहिता में शिव का जीवन-चरित्र वर्णित है। इसमें नारद-मोह की कथा, सती का दक्ष-यज्ञ मे देह त्याग, पार्वती विवाह, कार्तिकेय और गणेश पुत्रों का जन्म, शंखचूड़ से युद्ध और उनके संघार आदि की कथा का विस्तार से वर्णन है।
इस संहिता में ‘सृष्टि खण्ड’ के तहत जगत का आदि कारण शिव को माना गया है। शिव से ही आदि शक्ति ‘माया’ का आविर्भाव होता है और शिव से ही ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति बताई गई है।
3. शतरुद्र संहिता
इस संहिता में शिव के लोक प्रसिद्ध ‘अर्धनारीश्वर’ रूप धारण करने की कथा बताई गई है। यह स्वरूप सृष्टि विकास के लिए धरा गया था। इस संहिता में शिव की आठ मूर्तियाँ भी बताई गई है। इन मूर्तियों में भूमि, जल, अग्नि, पवन, अंतरिक्ष, क्षेत्रज, सूर्य, और चंद्र अधिष्ठित हैं।
4. कोटि रुद्र संहिता
कोटिरुद्र संहिता में शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। ये ज्योतिर्लिंग क्रमशः सौराष्ट्र में सोमनाथ, श्री शैल में मल्लिकार्जुन, उज्जैन में महाकालेश्वर , ओंकार में अमलेश्वर, हिमालय में केदारनाथ, डाकिनी में भीमेश्वर, काशी में विश्वनाथ, गोमती तट पर त्रयंबकेश्वर, चिताभूमि में वैद्यनाथ, सेतुबंध में रामेश्वर, दारुक वन में नागेश्वर और शिवालय में घुस्मेश्वर है।
इस संहिता में विष्णु द्वारा शिव के सहस्त्र नामों और शिवरात्रि व्रत के महात्म्य का वर्णन है।
5. उमा संहिता
इस संहिता में शिव के लिए तप, दान और ज्ञान का महत्व बताया गया है। अज्ञान के नाश से ही सिद्धि प्राप्त होती है और शिव पुराण का अध्यन करने से ही अज्ञान नष्ट हो जाता है।
6. कैलास संहिता
कैलास संहिता में ओंकार के महत्व का वर्णन है। इसमें विधिपूर्वक शिवोपासना, नंदी श्राद्ध और ब्रह्मयज्ञादि की विवेचना की गई है। गायत्री मंत्र के जप का महत्व भी बताया गया है।
7. वायु संहिता
इस संहिता के पूर्व और उत्तर भाग में पाशुपत विज्ञान, मोक्ष के लिए शिवज्ञान की प्रधानता, हवन, योग और शिव ध्यान का महत्व बताया गया है। शिव के निर्गुण और सगुण रूप की विवेचना की गई है। जिस प्रकार अग्नि तत्व और जल तत्व को किसी रूप में रखकर लाया जाता है, उसी प्रकार शिव अपना कल्याण कारी स्वरूप साकार मूर्ति के रूप में प्रकट करके पीड़ित व्यक्ति के सम्मुख आते हैं। शिव की महिमा का गान ही इस पुराण का प्रमुख विषय है।
जिन लोगों की कुंडली में ग्रहों से संबंधित दोष होते हैं, उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ग्रहों के दोष दूर करने के लिए शिवपुराण में भी कई उपाय बताए गए हैं।
इस ग्रंथ के अनुसार सप्ताह के सातों दिनों के ग्रह स्वामी अलग-अलग हैं और उन्हें प्रसन्न करने के उपाय भी अलग हैं। सप्ताह के सातों दिनों के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं, वह इस प्रकार है।
रविवार
रविवार के अधिपति देव सूर्य अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए रोज सूर्य को जल चढ़ाएं। ये उपाय रविवार से शुरू करें। किसी गरीब को गुड़ का दान करें।
सोमवार
ये चंद्र का दिन है और चंद्रदेव संपत्ति के दाता हैं। इस दिन किसी गरीब को उसकी पत्नी सहित भोजन कराएं। भोजन में शुद्ध घी से बना पकवान अवश्य रखें। शिवजी को खीर का भोग लगाएं।
मंगलवार
मंगल ग्रह इस वार के अधिपति हैं और वे बीमारियों को दूर करते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए मंगलवार को महाकाली की पूजा करें। साथ ही, किसी गरीब को भोजन कराएं। भोजन में उड़द, मूंग या तुवर की दाल जरूर रखें।
बुधवार
इस वार का कारक ग्रह बुध है, ये ग्रह बुद्धि का स्वामी है। बुधवार को भगवान गणेश को दूर्वा चढ़ाएं और दूध से बने पकवान का भोग लगाएं। विष्णु भगवान की पूजा से भी बुध प्रसन्न होते हैं।
गुरुवार
गुरुवार के स्वामी हैं बृहस्पति देव और वे आयु बढ़ाते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए गुरुवार को वस्त्र, यज्ञोपवीत और खीर से अपने इष्टदेव और शिवजी की पूजा करें।
शुक्रवार
सुख-सुविधा की चीजों का कारक ग्रह शुक्र है। इन्हें प्रसन्न करने के लिए शुक्रवार को किसी गरीब महिला को सुहाग का सामान और अन्न दान करें।
शनिवार
शनिवार का कारक ग्रह शनि है। शनिदेव मृत्यु भय दूर करते हैं। इन्हें प्रसन्न करने के लिए शनिवार को शिवलिंग पर तिल चढ़ाएं। किसी गरीब को तिल से बना भोजन कराएं। तेल का दान करें।

