टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
दिल्ली, 27 फ़रवरी, 2025

बिहार सरकार ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले 26 फरवरी 2025 को अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया। राजभवन के राजेंद्र मंडप में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सात विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई। इस रणनीतिक कदम को भाजपा और जनता दल यूनाइटेड द्वारा चुनाव से पहले अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।
नवनियुक्त मंत्रियों में जीवेश कुमार, राजू कुमार सिंह, संजय सरावगी, डॉ. सुनील कुमार, कृष्ण कुमार मंटू, मोतीलाल प्रसाद और विजय कुमार मंडल शामिल हैं।
गौरतलब है कि जीवेश कुमार और संजय सरावगी ने मैथिली भाषा में शपथ ली।
कैबिनेट में अब कुशवाहा, राजपूत, भूमिहार, कुर्मी और निषाद जैसी विभिन्न जातियों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
भाजपा का रणनीतिक जाति प्रतिनिधित्व:
विभिन्न जातियों से मंत्रियों को शामिल करना व्यापक मतदाता आधार को आकर्षित करने के लिए एक रणनीतिक कदम माना जाता है। बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में जाति की राजनीति लंबे समय से एक महत्वपूर्ण कारक रही है। विभिन्न समुदायों से प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके, भाजपा का लक्ष्य सामाजिक संतुलन बनाए रखना और विभिन्न जनसांख्यिकी के मतदाताओं को आकर्षित करना है।
मंत्री पद संभालने वाले सातों भाजपा विधायक बिहार के विभिन्न क्षेत्रों से हैं। इस क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व से स्थानीय समर्थन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने और आगामी विधानसभा चुनावों पर असर पड़ने की उम्मीद है। मिथिला क्षेत्र पर पार्टी का फोकस स्पष्ट है, क्योंकि इस क्षेत्र से दो विधायकों को मंत्री बनाया गया है।
इस्तीफा और नई नियुक्तियां:
इस मंत्रिमंडल विस्तार से पहले डॉ. दिलीप जायसवाल ने “एक व्यक्ति, एक पद” के सिद्धांत के तहत राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे के बाद भी वे बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद पर बने हुए हैं।
नए मंत्री विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं:
रीगा विधायक मोतीलाल प्रसाद और संजय सरावगी वैश्य समुदाय से हैं, डॉ. सुनील कुमार कुशवाहा का प्रतिनिधित्व करते हैं, जीवेश कुमार भूमिहार से हैं, विजय कुमार मंडल निषाद से हैं, राजू कुमार सिंह राजपूत का प्रतिनिधित्व करते हैं, कृष्ण कुमार मंटू कुर्मी जाति से हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में 11 महीने की देरी:
इस मंत्रिमंडल विस्तार में 11 महीने की देरी हुई थी, लेकिन यह चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण समय पर हुआ है। विभिन्न जातियों के प्रतिनिधियों को शामिल करना विपक्षी दलों के खिलाफ एक मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है। यह बिहार में भाजपा द्वारा अपनी सामाजिक समीकरण रणनीति को मजबूत करने के प्रयास को दर्शाता है।
विभिन्न पृष्ठभूमि और क्षेत्रों से मंत्रियों की नियुक्ति करके, भाजपा इस साल के अंत में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी चुनावी संभावनाओं को मजबूत करने की उम्मीद करती है। इस सोची-समझी चाल का उद्देश्य राज्य के भीतर क्षेत्रीय आकांक्षाओं को संबोधित करते हुए विभिन्न समुदायों के बीच समर्थन को मजबूत करना है।