टुडे इंडिया ख़बर / स्नेहा
महाकुंभ नगर, 23 फ़रवरी, 2025

प्रयागराज में 12 साल बाद महाकुंभ लगा है। इसको लेकर लोगों में संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाने की मंशा हिलोरें मार रही है। दिनभर प्रयागराज की सड़कों पर जनसैलाब उमड़ रहा है। संगम तट तक पहुंचने के लिए लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर पहुंच रहे हैं और आस्था की डुबकी लगा रहे हैं।
महाकुंभ में स्नान करने के लिए परिवार के सभी सदस्य बेताब थे. गहन विचार-विमर्श के बाद ट्रेन का टिकट बुक किया. 17 फरवरी की सुबह परिवार के साथ पटना के लिए कूच किया. ट्रेन भारी भीड़ देखकर मन डोल गया और पटना जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और बख्तियारपुर में ही उतर जाना मुनासिब समझा.

मन में यह चल रहा था कि जगह मिली तो ट्रेन पर चढ़ेंगे अन्यथा यहीं से बांका वापस लौट जाएंगे. करीब दो से तीन घंट के तक इंतजार करने के बाद ट्रेन बख्तियारपुर पहुंची तो ट्रेन में इतनी भीड़ थी कि चढ़ना मुश्किल था. एक बारगी तो वापस लौट जाने का मन हुआ, लेकिन पत्नी ने हिम्मत कर ट्रेन पर चढ़ने के लिए प्रेरित किया. ट्रेन पर चढ़ने के बाद अपने सीट तक पहुंचना किसी जंग लड़ने जैसा प्रतीत हो रहा था.

लोगों को लूटने वालों की नहीं थी कोई कमी
करीब 40 मिनट की मशक्कत के बाद अपने सीट पर पहुंचा. लेकिन, सीट लोगों से फुल था. किसी तरह मात्र बैठने की जगह मिली. भीड़ ऐसी थी कि बाथरूम तक जाना टेढ़ी खीर साबित हो रही थी. हर स्टेशन पर लोगों का हुजुम था और सभी प्रयागराज जाने के लिए व्याकुल दिख रहे थे. भारी भीड़ के बीच प्रयागराज तो पहुंच गया, लेकिन असल परीक्षा यही होनी थी.

प्रयागराज स्टेशन पर उतरने के बाद पैदल ही सफर करना था. स्टेशन से बाहर आने के बाद लूट का खेल शुरू हुआ. चाहे बाइक वाले हो या अन्य चार पहिया वाहन संगम तट तक ले जाने का झांसा देकर लोगों का दोहन कर रहे थे. लोगों से 500 से लेकर 1 हजार तक वसूल कर रहे थे और पुलिस की चेंकिंग का हवाला देकर जहां मर्जी वहीं छोड़ देते थे.

हर हाल में लोगों को पैदल चलकर ही संगम घाट तक पहुंचना होता था. साथ में बच्चे थे तो बाइक करना ही पड़ा. बाइक वाले ने संगम घाट से कई किलोमीटर पीछे ही उतार दिया. किसी तरह पैदल यात्रा करते हुए संगम घाट पहुंचे और आस्था की डुबकी लगाई. आस्था की डुबकी लगाने के बाद रात को वहीं रूकने का प्लान था.

रेलवे स्टेशन तक पहुंचना नहीं रहा आसान
रात को रूकने के लिए जब होटल की खोज शुरू की तो रेट सुनकर होश उड़ गए. 6 हजार से लेकर 10 हजार तक नाइट स्टे के लिए मांग रहे थे. निराश होकर कहीं भी रात गुजारने का ठिकाना ढूंढने लगे तो संगम घाट से कुछ ही दूरी पर एक बजरंगबली का मंदिर नजर आया. जहां प्रति मुंडा 250 रूपए देकर किसी तरह रात गुजारा.

हालांकि सबसे अच्छी बात रही कि मंदिर में खाना खाने को मिल गया और सोने के लिए गद्दा और कंबल भी मिला. सुबह ट्रेन थी तो अहले सुबह 4 बजे ही मंदिर छोड़ दिया और प्रयागराज जंक्शन जाने के लिए पैदल ही निकल पड़ा. कई किलोमीटर चलने के बाद रास्ते में ठेला मिला तो प्रति व्यक्ति 100-100 रूपए लेकर कुछ ही दूरी पर ले जाकर छोड़ दिया.

इसके बाद फिर चलना शुरू किया. करीब दो किलोमीटर चलने के बाद ऑटो वाले ने 50 रूपए में स्टेशन छोड़ने की बात कही. ऑटो पर सवार हो गया. इसके बाद कुछ दूरी तय करने के बाद ऑटो वाले ने यह कहकर उतार दिया कि इससे आगे अब ऑटो नहीं जाएगी. यहां से फिर मजबूरन पैदल चलना शुरू किया. स्टेशन तो दिखने लगा, लेकिन आप आसानी से नहीं पहुंच सकते थे. काफी देर तक पैदल चलने के बाद स्टेशन पहुंचे.

प्रयागराज स्टेशन पर सख्त दिखे रेल प्रशासन
स्टेशन से एक किलोमीटर दूर ही टिकट की चेंकिंग हो रही थी. भीड़ को नियंत्रित करने के लिए ट्रेन में रिजर्वेशन कराने वाले और नार्मल टिकल वाले के लिए अलग-अगल प्रवेश का रास्ता बनाया गया था. थके-हारे स्टेशन तो पहुंच गया, लेकिन ट्रेन के इंतजार की घड़ियों ने परेशान कर दिया. शायद ही कोई ट्रेन थी जो अपने निर्धारित समय से चल रही थी. दो से ढाई घंटे विलंब के बाद ट्रेन स्टेशन पर पहुंची.

हालांकि यहां रेल प्रशासन पूरी तरह से सख्त दिखी और रिजर्वेशन वाले कोच में नॉर्मल टिकट वाले को घूसने नहीं दिया जा रहा था. प्रयागराज से भागलपुर आने में कोई परेशानी नहीं हुई. लेकिन ट्रेन भागलपुर करीब 5 घंटे विलंब से पहुंची. भागलपुर स्टेशन उतरने के बाद राहत की सांस ली.